नवधा भक्ति रामायण चौपाई - Navdha Bhakti Ram Charit Manas

 नवधा भक्ति क्या है? अगर आप भी यह जानना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही जगह आए हैं। यहाँ आज हम आपको न केवल Navdha Bhakti Ram Charit Manas बल्कि वास्तव में भक्ति क्या है वो भी बताएंगे। 

नवधा भक्ति रामायण चौपाई Navdha Bhakti Ram Charit Manas
नवधा भक्ति रामायण चौपाई Navdha Bhakti Ram Charit Manas


प्रिय भाई बहनों। आपके मन में कई बार यह सवाल आया होगा कि भक्ति क्या है। आपसे किसी ने पूछा हो या अपने किसी से पूछा हो। यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब कम शब्दों में देना थोड़ा मुश्किल हो जाता है। इसी लिए आपको ले चलते हैं उस समय में जब प्रभु श्री राम ने स्वयं बताया था कि भक्ति क्या है और नवधा भक्ति राम चरित मानस में क्या होती है। 

नवादा में भक्ति के 9 प्रकार कौन से हैं?


तो बात है आरण्यकांड कि। जैसा कि आप सब जानते ही होंगे श्रीरामचरितमानस में भगवान श्री राम के जीवन को अलग अलग कांड में बाटा हुआ है। आरण्यकांड उसी में से एक कांड है। सीता माँ के रावण द्वारा हरण के बाद श्री राम और लक्ष्मण उन्हें जब ढूंढ रहे थे तो वह माता शबरी से मिले। जोकि कई वर्षों से भगवान श्री राम की प्रतिक्षा में थी।


यही शबरी के झूठे बेर भी भगवान ने खाए थे जिसके बारे में आप सबने सुना ही होगा। तब शबरी माता के पूछने पर श्री राम ने भक्ति क्या है और Navdha Bhakti Ram Charit Manas के बारे में बताया। 


आज हम भी आपको वही नवधा भक्ति जोकि श्री राम ने शबरी माता को दी और जो श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखी है, बताएंगे। 


तो आप भी सावधान होके पढ़े और अपने मन में धारण करे। 


नवधा भक्ति की पहली भक्ति


प्रथम भगति संतन्ह कर संगा।


श्री राम यह बताते हैं कि प्रथम भक्ति है संतो का साथ। केवल संतो के साथ से ही आपके जीवन में अच्छे परिवर्तन आएंगे कि आप खुद भी नहीं सोच सकते। जैसा कि आपने सुना भी होगा कि अच्छे लोगों के साथ रहने से आप बहुत कुछ सिख जाते हैं। 


यह अच्छे लोगों का अर्थ संत से ही है। संत यानी जो भगवान में लीन रहे। संतो की संगति सबसे अच्छी संगति मानी जाती है। 


जैसा कि प्रेम भूषण जी महाराज का एक भजन भी है कि “संतो के संग लाग रे, तेरी अच्छी बनेगी”। यही भजन आपको जरूर सुनना चाहिए। 


नवधा भक्ति की दूसरी भक्ति


दूसरि रति मम कथा प्रसंगा


जिस तरह पहली भक्ति संतो का साथ है। उसी तरह दूसरी नवधा भक्ति Navdha Bhakti ki chaupai में प्रभु श्री राम बता रहे हैं कि भगवान की कथा, उनके प्रसंग से प्रेम होना ही नवधा भक्ति की दूसरी भक्ति है। जिस तरह आप इस article को पढ़ रहे हैं। यह भगवान का एक प्रसंग ही तो है। इसमें आपकी रुचि है। आपको इससे प्रेम है। आप सुनना चाहते हैं या पढ़ना चाहते हैं या जानना चाहते हैं। यह सब श्री राम के नवधा भक्ति की दूसरी भक्ति है। 


यही कुछ लोग इस article को देख कर अनदेखा कर रहे होंगे या इससे बीच में ही छोड़ चुके होंगे। यह दिखाता है कि आपमें भगवान के प्रति कितनी श्रद्धा है। 


नवधा भक्ति की तीसरी भक्ति


गुर पद पंकज सेवा तीसरि भगति अमान।


भगवान श्री राम अपने गुरु की सेवा को तीसरी भक्ति बताते हैं। की कैसे हमें अपने गुरु की हर तरह से सेवा करनी चाहिए। अपने गुरु को आदर देना चाहिए। श्री राम के जीवन से भी हमे यही सीखने को मिलता है। की कैसे उन्होंने जगह जगह अपने गुरु की इच्छा के लिए क्या क्या किया। वह हवन की रक्षा हो या जनक दरबार में तब तक कुछ न करना जब तक गुरु कुछ न बोले। 


बता दे कि जनक दरबार में जब शिव धनुष भंग किया था प्रभु श्री राम ने वो बिना गुरु के कहने पर नहीं किया था। पहले उनके गुरु विश्वामित्र ने उन्हें धनुष भंग करने तभी उन्होंने अपने गुरु की आज्ञा का पालन किया। 


नवधा भक्ति की चौथी भक्ति 


चौथि भगति मम गुन गन करइ कपट तजि गान


कपट छोड़ के भगवान के गुण गाना ही चौथी भक्ति है। आप भले भक्त हो लेकिन आपके मन में कपट भी हो तो वह भक्ति नहीं है। भगवान कहते हैं कि कपट रहित होकर ही उनके गुण का गान करना चाहिए। 


नवधा भक्ति की पांचवीं भक्ति


मंत्र जाप मम दृढ़ बिस्वासा। पंचम भजन सो बेद प्रकासा॥


पांचवीं भक्ति Navdha Bhakti ki chaupai में भगवान श्री राम कहते हैं कि पूरे विश्वास के साथ मंत्र जाप करना चाहिए। वेदों में भी मंत्र जाप को भी प्राथमिकता दी गई है। 


ऐसा कहा भी जाता है कि देवता मंत्रों के अधीन होते हैं। और अगर मंत्र जाप पूरे विश्वास से किया जाए तो वहीं भक्ति है। 


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नवधा भक्ति की छठी भक्ति


छठ दम सील बिरति बहु करमा। निरत निरंतर सज्जन धरमा॥


भगवान कहते हैं कि हे शबरी छठी भक्ति है कि अपनी इंद्रियों को वश में रखना, शील यानी अच्छा चरित्र या स्वभाव रखना। गलत काम न करना, और हमेशा संतो के धर्म में लगे रहना। सज्जन लोगो को धर्म में लगे रहना। 


नवधा भक्ति की सातवीं भक्ति


सातवँ सम मोहि मय जग देखा। मोतें संत अधिक करि लेखा॥


सातवीं भक्ति Navdha Bhakti ki chaupai में श्री राम कहते हैं कि सभी को, पूरे संसार को एक रूप से देखना, बिना किसी भेद भाव के। और संतो को भगवान से भी अधिक मानना। 


श्रीरामचरितमानस में भी कई बार भगवान ने कहा है कि वह केवल संतो के लिए ही पृथ्वी पर अवतार लेते हैं। और तुलसीदास जी ने भी लिखा है कि सिया राम मैं सब जग जानी, करहूं प्रणाम जोरी जुग पानी। मतलब मैं (तुलसीदास जी) समस्त संसार को श्री राम और माँ सीता जान कर, सभी को प्रणाम करता हूँ। 


नवधा भक्ति रामायण चौपाई Navdha Bhakti Ram Charit Manas
नवधा भक्ति रामायण चौपाई Navdha Bhakti Ram Charit Manas


नवधा भक्ति की आठवीं भक्ति


आठवँ जथालाभ संतोषा। सपनेहुँ नहिं देखइ परदोषा॥


जितना मिला है, उतने में ही संतोष रखना चाहिए और किसी के दोषों को सपने में भी न देखना। यही नवधा भक्ति की आठवीं भक्ति है। भगवान हमे बताना चाह रहे हैं कि यह भी एक प्रकार की भक्ति ही है। 


नवधा भक्ति की नवीं भक्ति 


नवम सरल सब सन छलहीना। मम भरोस हियँ हरष न दीना॥


आखिरी यानी कि नवीं भक्ति यही है कि सरल रहना। सम भाव में रहना। न खुशी और न विषाद को अपने ऊपर हावी होने देना। और अपने दिल में भगवान के लिए भरोसा रखना। 


भगवान यह भी कहते हैं कि हे शबरी इन नव भक्तियों में से एक भी अगर कोई अपना लेता है तो वह नारी पुरुष या की भी भगवान के अत्यंत प्रिय हो जाता है। 


तो भक्ति आज हमने आको बताई भगवान द्वारा ही बताई हुई नवधा भक्ति। श्री राम ने हमारे लिए भक्ति की परिभाषा पहले ही दे दी है। तो अगली बार आपसे कोई पूछे कि भक्ति क्या है? नवधा भक्ति क्या है? आप उसे जरूर हमारा यह article पढ़ने बोले और आप भी यह बार बार पढ़ें ताकि आप भी ज्ञान ग्रहण करे। 


Comment करके बताए कि आपको सबसे अच्छी भक्ति कौन सी लगती है या आप कौन सी भक्ति करते हैं। 





रामचरितमानस में नवधा भक्ति कौन-कौन सी है?

रामचरितमानस में नवधा भक्ति का मतलब है 9 तरह की भक्ति। इसे भगवान श्री राम ने माता शबरी को दिया था। पहली भक्ति है संतो का संग, दूसरी भक्ति है भगवान की कथा सुनना, तीसरी गुरु के चरणों की सेवा या गुरु की सेवा, चौथी कपट छोड़ कर भगवान के गुणों का गान करना, पांचवीं भक्ति है कि पूरे विश्वास के साथ भगवान के मंत्रों का जाप करना, छठी भक्ति है बुरे कर्म छोड़ कर सज्जनों का धर्म करना, सातवीं भक्ति है संसार को एक दृष्टि से देखना और संत को भगवान से भी अधिक मानना, आठवीं भक्ति है जो मिल जाए उसी में संतोष रखना और किसी का सपने में भी गलत न सोचना, और नवी भक्ति है अपने हृदय में भगवान के लिए भरोसा रखना। 


माता शबरी से भगवान श्रीराम ने कितने प्रकार की भक्ति का वर्णन किया था?

भगवान श्रीराम ने माता शबरी से 9 तरह की भक्ति का वर्णन किया जिसे नवधा भक्ति भी कहते हैं। 


श्री राम ने शबरी को क्या ज्ञान दिया था?

श्री राम ने शबरी माता को नवधा भक्ति का ज्ञान दिया था। माता शबरी के बोलने पर की वो नीच जात से हैं, अधम हैं, तब भगवान श्री राम ने उन्हें बताया कि उनका, उनके भक्तों के साथ संबंध प्रेम का है। और इन 9 में से कोई 1 भक्ति को अपना ले तो वह भगवान का प्रिय हो जाता है।


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