ओम नमः शिवाय जिस प्रकार इस ब्रह्मांड का ना कोई अंत है और ना ही कोई शुरुआत उसी प्रकार शिव अनादि है संपूर्ण ब्रह्मांड शिव के अंदर समाया हुआ है। आइए श्रवण करते हैं सावन सोमवार व्रत कथा (Somvar Vrat Katha)
Somvar Vrat Katha |
(सावन सोमवार व्रत कथा) Somvar Vrat Katha प्राचीन काल की बात है एक नगर में एक बहुत धनवान साहूकार रहता था जिसके घर में धन की कमी नहीं थी परतु उसको एक बहुत बड़ा दुख था कि उसके कोई पुत्र नहीं था।
वह इसी चिंता में दिन रात लगा रहता था वह पुत्र की कामना के लिए प्रत्येक सोमवार को शिव जी का व्रत और पूजन किया करता था तथा सायन काल को शिव मंदिर में जाकर शिव जी के सामने दीपक जलाया करता था।
उसके इस भक्ति भाव को देखकर एक समय पार्वती जी ने शिवजी महाराज से कहा कि महाराज यह साहूकार आपका अनन्य भक्त है और आपका व्रत और पूजन बड़ी श्रद्धा से करता है इसकी मनोकामना पूर्ण करनी चाहिए।
शिव जी ने कहा हे पार्वती यह संसार कर्म क्षेत्र है जैसे किसान खेत में जैसा बीज बोता है वैसा ही फल काटता है उसी तरह इस संसार में जैसा कर्म करते हैं वैसा ही फल भोगते हैं। पार्वती जी ने अत्यंत आग्रह से कहा महाराज जब यह आपका अनन्य भक्त है और इसको अगर किसी प्रकार का दुख है तो उसको अवश्य दूर करना चाहिए क्योंकि आप सदैव अपने भक्तों पर दयालु होते हैं और उनके दुखों को दूर करते हैं यदि आप ऐसा नहीं करेंगे तो मनुष्य आपकी सेवा तथा व्रत क्यों करेंगे।
पार्वती जी का ऐसा आग्रह देख शिव जी महाराज कहने लगे हे पार्वती इसके कोई पुत्र नहीं है इसी चिंता में यह अति दुखी रहता है इसके भाग्य में पुत्र ना होने पर भी इसको मैं पुत्र प्राप्ति का वर देता हूं परंतु यह पुत्र केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा इसके पश्चात वह मृत्यु को प्राप्त हो जाएगा इससे अधिक मैं और इसके लिए कुछ नहीं कर सकता।
यह सब बातें साहूकार सुन रहा था इससे उसको ना तो कुछ प्रसन्नता हुई और ही कुछ दुख हुआ वह पहले जैसा ही शिवजी महाराज का व्रत और पूजन करता रहा कुछ काल व्यतीत हो जाने पर साहूकार की स्त्री गर्भवती हुई और दसवें महीने में उसके गर्भ से अति सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई।
साहूकार के घर में बहुत खुशी मनाई गई परंतु साहूकार ने उसकी केवल 12 वर्ष की आयु जानकर अधिक प्रसन्नता प्रकट ना की और ही किसी को भेद ही बताया जब वह बालक 11 वर्ष का हो गया तो उस बालक की माता ने उसके पिता से विवाह आदि के लिए कहा तो वह साहूकार करने लगा कि अभी मैं इसका विवाह नहीं करूंगा अपने पुत्र को काशी जी पढ़ने के लिए भेजूंगा।
फिर साहूकार ने अपने साले अर्थात बालक के मामा को बुला कर के उसको बहुत सा धन देकर कहा तुम मेरे बालक को काशी जी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जिस स्थान पर भी जाओ यज्ञ तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते जाओ वह दोनों मामा भांजे यज्ञ करते और ब्राह्मणों को भोजन कराते जा रहे थे।
रास्ते में उनको एक सहर पड़ा उस शहर में राजा की कन्या का विवाह हो रहा था दूसरे राजा का लड़का जो विवाह कराने के लिए बारात लेकर आया था वह एक आंख से काना था उसके माता-पिता को इस बात को लेकर बड़ी चिंता थी कि कहीं वर को देखकर कन्या के माता-पिता विवाह में किसी प्रकार की अड़चन पैदा ना कर दे इस कारण जब उसने अति सुंदर सेठ के लड़के को देखा तो मन में विचार किया कि क्यों ना दरवाजे के समय इस लड़के से वर का काम चलाया जाए ऐसा विचार कर वर ने उस लड़के और मामा से बात की तो वे राजी हो गए फिर उस लड़के को वर के कपड़े पहनाकर तथा घोड़ी पर चढ़ाकर दरवाजे पर ले गए और सब कार्य प्रसन्नता से पूर्ण हो गया फिर वर के पिता ने सोचा कि यदि विवाह कार्य भी इसी लड़के से करा लिया जाए तो क्या बुराई है।
ऐसा विचार कर लड़के और उसके मामा से कहा यदि आप फेरो का काम और कन्या दान के काम को भी करा दें तो आपकी बड़ी कृपा होगी और मैं इसके बदले में आपको बहुत कुछ धन दूंगा तो उन्होंने स्वीकार कर लिया और विवाह कार्य भी बहुत अच्छी तरह से संपन्न हो गया परंतु जिस समय लड़का जाने लगा तो उसने राजकुमारी की चुंदड़ी के पल्ले पर लिख दिया कि तेरा विवाह तो मेरे साथ हुआ है परंतु जिस राजकुमार के साथ तुमको भेजेंगे वह एक आंख से काना है और मैं काशी जी पढ़ने जा रहा हूं लड़के के जाने के पश्चात उस राजकुमारी ने जब अपनी चुंदड़ी पर ऐसा लिखा हुआ पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मना कर दिया और कहा कि वह मेरा पति नहीं है मेरा विवाह इसके साथ नहीं हुआ है वह तो काशी जी पढ़ने के लिए गया है राजकुमारी के माता-पिता ने अपनी कन्या को विदा नहीं किया और बारात वापस चली गई।
उधर सेठ का लड़का और उसका मामा काशी जी पहुंच गए वहां जाकर उन्होंने यज्ञ करना और लड़के ने पढ़ना शुरू कर दिया जब लड़के की आयु 12 वर्ष की हो गई तो उस दिन उन्होंने यज्ञ रचा रखा था कि लड़के ने अपने मामा से कहा कि मामा जी आज मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है तब मामा ने कहा कि अंदर जाओ और सो जाओ लड़का अंदर जाकर सो गया और थोड़ी देर में उसके प्राण निकल गए जब उसके मामा ने आकर देखा कि वह मुर्दा पड़ा है तो उसको बड़ा दुख हुआ और उसने सोचा कि अगर मैं अभी रोना पिटना मचा दूंगा तो यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा अतः उसने जल्दी से यज्ञ का कार्य समाप्त कर ब्राह्मणों के जाने के बाद रोना पीटना आरंभ किया। somvar vrat katha
संयोग वस उसी समय शिव पार्वती जी उधर से जा रहे थे जब उन्होंने जोर जोर से रोने की आवाज सुनी तो पार्वती जी कहने लगी कि महाराज कोई दुखिया रो रहा है उसके कष्ट को दूर कीजिए जब शिव पार्वती ने पास जाकर देखा तो वहां एक लड़का मुर्दा पड़ा था पार्वती जी कहने लगी कि महाराज यह तो उसी सेठ का लड़का है जो आपके वरदान से हुआ था हे महाराज इस बालक को और आयु दीजिए नहीं तो इसके माता-पिता तड़प तड़प कर मर जाएंगे पार्वती जी के बार-बार आग्रह करने पर शिव जी ने उसको जीवन वरदान दिया और शिव जी महाराज की कृपा से लड़का जीवित हो गया।
शिव जी और पार्वती जी कैलाश पर्वत पर चले गए तब वह लड़का और मामा उसी प्रकार यज्ञ करते तथा ब्राह्मणों को भोजन कराते हुए अपने घर की ओर चल पड़े रास्ते में उसी शहर में आए जहां उसका विवाह हुआ था वहां पर आकर उन्होंने यज्ञ आरंभ कर दिया तो उस लड़के के ससुर ने उसको पहचान लिया और अपने महल में ले जाकर उसकी बड़ी खातिर की साथ ही बहुत से दास दसियों सहित आदर पूर्वक लड़की और जमाई को विदा किया जब वह अपने शहर के निकट आए तो मामा ने कहा कि मैं पहले तुम्हारे घर जाकर खबर कर देता हूं जब उस लड़के का मामा घर पहुंचा तो लड़के के माता-पिता घर की छत पर बैठे थे और यह प्रण कर रखा था यदि हमारा पुत्र सकुशल लौट आया तो हम राजी खुशी नीचे आ जाएंगे नहीं तो छत से गिर कर अपने प्राण खो देंगे इतने में उस लड़के के मामा ने आकर यह समाचार दिया कि आपका पुत्र आ गया है तो उनको विश्वास नहीं हुआ तब उसके मामा ने शपथ पूर्वक कहा कि आपका पुत्र अपनी स्त्री के साथ बहुत सारा धन लेकर आया है तो सेठ ने आनंद के साथ उसका स्वागत किया और बड़ी प्रसन्नता के साथ रहने लगे।
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सावन के सोमवार व्रत रखने से क्या होता है?
इस प्रकार से जो कोई भी सोमवार के व्रत को धारण करता है अथवा इस कथा को पढ़ता या सुनता है उसकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है। उम्मीद है आपको सोमवार व्रत की कथा अच्छी लगी होगी। अगर आपको यह सावन सोमवार व्रत कथा somvar vrat katha अच्छी लगी हो तो कमेंट सेक्शन में ओम नमः शिवाय लिखना ना भूले धन्यवाद।
सोमवार के व्रत में कितने टाइम खाना खाना चाहिए?
सोमवार व्रत में आप 1 टाइम खा सकते हैं। और वैसे आप फलाहार करिए। ध्यान यह रखना है की आप व्रत सच्चे मन और श्रद्धा से करे। और भगवान शिव से प्रार्थना करे की आप पर कृपा करे।
सावन सोमवार के व्रत में क्या खाया जाता है?
पुराणों की माने तो आप शिव सोमवार व्रत में केवल फलाहार करे। फल के अलावा आप और किसी चीज का सेवन न करे। पानी आप पी सकते हैं अगर आपने निर्जला व्रत नहीं रखा है तो।
सोमवार व्रत के नियम क्या है?
बात करे सोमवार व्रत के नियम की तो सबसे पहला नियम यही है की आप सच्ची श्रद्धा और सच्चे मन से भगवान के लिए करे। व्रती को स्नान करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। अगले दिन व्रत खोलने के लिए अगर प्रसाद को उपयोग में लाए तो अच्छा है। (अगर प्रसाद से व्रत न भी खुले तो भी कोई बात नही)
सोमवार व्रत नियम (Somvar Vrat Niyam) को डिटेल में यह पढ़े।
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